जोड़-घटावोॅ गुना-भाग के
सब रंग भिन्न बनावै छै
जाति-धरम के रंगलोॅ चुनरी
रणनीत रंग लगावै छै॥
गाल बजाबै जाल बिछावै
सबकेॅ लाल लड़ावै छै
उटका-पैची, उट्ठा-पट्टक
डेगे-डेग कराबै छै।
लोभ जगावै मोह बढ़ाबै
सब रं दाव लगाबै छै
अपन्हें रंगॅ रंगी चुनरिया
हेना हाथ लगावै छै।
वादा दै-दै जी ललचाबै
सब्ज-बाग दिखलाबै छै
लूटी-लूटी रतन खजाना
अपने महल बनाबै छै॥
नैन करै निधि के मंथन
राहू केतू सम धावै छै
टीका पहिरै माला फेरै
लूटे भसम लगाबै छै।
बोलै कुछ कुछुवे करबाबै
पाँच बरस में आवै छै
सबके घर में रात अन्हरिया
निज घर चान उगावै छै।
‘मथुरा सिंह’ रण भेद बताबै
झगड़े आग लगाबै छै
तोड़ोॅ टेंग भेदिया केॅ रे
मिसरी घोल पिलाबै छै।