Last modified on 16 अक्टूबर 2013, at 22:43

रतन दीया !/ कन्हैया लाल सेठिया

भलांई दै
लगोलग फूंकां
नाख उपराथळी धूड़
न कजरावै‘र बुझै
ए रतन दीया,
जे करणाईं चावै
अदीठ
आं री जोत
मींच ले दीठ
फेर खेल, खुल‘र
कोनी दिखै
तनैं थारी छयां