(रनीराम गढ़वाली के लिए यह ग़ज़ल)
कोई हिन्दू कोई मुसलमां कोई मिला ख्रिस्तान<ref>ईसाई</ref> मियाँ।
इस बस्ती के किस कोने में बसते हैं इनसान मियाँ॥
दोनों की बातें हैं मीठी दोनों प्यार जताते हैं
दोस्त और दुश्मन की आख़िर कैसे हो पहचान मियाँ।
चुपड़ी और दो-दो खा खाकर हमको वो समझाते हैं
रूखी-सूखी खाकर पानी पीकर लम्बी तान मियाँ।
इनसानों के दुश्मन उनको आपस में लड़वाते हैं
फूटपरस्तों की साज़िश से मुल्क हुआ वीरान मियाँ।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई अस्ल में हैं भाई-भाई
इनके मिलने से बनता है पूरा हिन्दुस्तान मियाँ।
दाढ़ी चोटी कण्ठी माला छाप तिलक भाषा बोली
देखो तो बस धार ही देखो क्या देखो हो म्यान मियाँ।
सबने उसे सीने से लगाया सबने गरेबां चाक किया
सोज़ को सब दाना कहते थे निकला वो नादान मियाँ॥
पुरानी ग़ज़ल अब मुकम्मल हुई
11-11-2016
शब्दार्थ
<references/>