मैं देख रहा हूं
अपने बेटे और बेटी को
जिनके कंधे
अब उचक कर
मेरे कंधे को पार कर जाना चाहते हैं
मैं देख रहा हूं
उनकी आंखों को
जिनमें सात नहीं
हज़ार रंगों वाले इन्द्रधनुष तैरते हैं
मैं सुन रहा हूं
उनके कानों में
हज़ार सुरों वाली
स्वर-लहरियां बज रही हैं
मैं महसूस कर रहा हूं
उनके बाजुओं को
जो समय को बांधने को बेसब्र हैं
और उनकी अंजुरियां
जो सितारों को बटोर रही हैं
मैं तक रहा हूं
उनके पांव
जो रफ़्तार से तेज़ हो रहे हैं
कहीं लड़खड़ा न जाएं वे
इसलिये बन जाना चाहता हूं
गति-अवरोधक
किन्तु फिर सोचता हूं
गिरेंगे, तभी तो बढ़ेंगे
पूर्ण होकर, अबाध, लक्ष्य तक।