Last modified on 12 मई 2017, at 15:00

रमई / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल

रमई जा रहा है
शहर
अनाज के बोरों के साथ
ट्रक में लदकर

छोड़कर अपना घर
नदियों,पेड़ों से करके वादा –
कि लौटेगा
उसके आने तक प्रतीक्षा करेगी नदी
बचाए रखेगी खुद को सूखने से
कि वह आएगा
और तैरेगा उसकी धारा में
चढ़ेगा पेड़ों की पीठ पर
विश्वास है
पेड़ों को भी
रमई को भी
विश्वास है
कि वह लौटेगा

पेड़ों की पुकार में
नदी की धार में
जीवन के हाहाकार में
लौटेगा वह अपने बूढ़े सपनों पर सवार एक दिन

गाँव से शहर की ओर भाग रहा है ट्रक
भाग रहा है रमई का मन गाँव की ओर
बढ़ रही है
गाँव से शहर की दूरी।