रवि, शशि, तारक तुम्हारी चारु-चितवन में,
सृष्टि एक रचना है कौतुक तिहारे की।
प्रलय-प्रभंजन में प्राणों के पंछियों को,
झाँकी दिखलाते भव-सिन्धु के किनारे की।
कल परसों की बात गणिका अजामिल की,
चर्चा बड़ी है गजराज के उबारे की।
हाथ थाम लेना बदनाम कर देना मत,
लाज रख लेना नाथ नाम के पुकारे की।