गुण गाता हूँ मैं स्वच्छ मेज़पोश के
उजली बर्फ़ पर से
उठा लाई है माँ उसे
और बिछाने लगी है मेज़ पर
रविवार की इस दोपहर में ।
ठीक करती है माँ सिलवटें
झालरों को झूलते देखती है माँ
और चिपक जाते हैं नरम धागे
माँ की काली खुरदरी उँगलियों पर ।
आख़िर मिल गया है
रोटी के टुकड़े को
धरती के देवताओं का पूरा सम्मान ।
स्वच्छ और उज्जवल मेज़पोश पर रोटी
मज़बूत नसों पर जैसे पारदर्शी बर्फ़
जैसे रुपहली प्रसन्न पत्तियाँ मेपल की ।
रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह