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रवि तनया के तीर अंग-अंग धारे धीर / अनुराधा पाण्डेय

रवि तनया के तीर अंग-अंग धारे धीर, तिरछी कमान कर, गोपियाँ रिझा रहे।
दिखलाए पंथ प्रेम, बता रहे योग क्षेम, ऊधो को भेज बोझिल, ज्ञान भी सीखा रहे?
चंद दिन रास रंग, डाल कूप प्रेम भंग, छोड आज नंद गाँव, नेह बिसरा रहे।
पहले चढाए चोटी, किन्तु थी नियत खोटी, क्या हुआ है आज क्यों वो, तुंग से गिरा रहे।