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रस-संचार / महेन्द्र भटनागर


आज रस-संचार !

अश्रु के ले सिंधु को
दुःख उर से खो गया,
यह युगों के बोझ का
भार हलका हो गया,
गीत मन ने गा लिया
गूँजती झंकार ! / आज रस-संचार !

धूप जीवन की गयी
शांत प्राणों की जलन,
बादलों की छाँह में
मिल गया शीतल पवन,
पे्रम प्रिय का पा गया
मौन कर स्वीकार ! / आज रस-संचार !

लय निमिष में हो गये
कष्ट सब दिन-रात के
हो गया अंतर हरा
वाटिका-सम-पात के,
सुख चिरंतन पा गया
स्वर्ग कर साकार ! / आज रस-संचार!
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