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रहता हूँ तरसता / राजकिशोर सिंह

रहता हूँ तरसता
रोटी के बिना मैं
रहता हूँ महकता
पफूलों के बिना मैं
चंदा और सूरज से
कह दूँ तुरंत मैं
रहता हूँ चमकता
सूरज के बिना मैं
चंद कपड़ों की ऽातिर
दिऽता नग्न सा
रहता हूँ झलकता
कपड़ों के बिना मैं
ना बादल ना बिजली
समुंदर सूऽा है
रहता हूँ बरसता
पानी के बिना मैं
चूड़ी और कंगन
लजाकर के भागी
रहता हूँ ऽनकता
चूड़ी के बिना मैं।