(एक निर्वासित राजकुमारी के नाम)
जब हंसती हो खिलखिलाकर तुम
खिल उठती हैं चारों दिशा कलियाँ
गूंज उठते हैं देव्य-गीत
तुम्हारी आँखों की पुतलियों ने
समेटे हैं सत्य के असंख्य सूर्य
और पलकों की छावों में बसे
विशवास के आकाशों पर
उड़ते हैं सपनों के परिन्दे
तुम्हारे माथे के पूजा-थाल पर
तिलक की आरती की लौ
रास्ता दिखाती है देव्य-नगर का
तुम्हारी ही मुट्ठी में हैं
समुद्र, धरती और आकाश
(जल, थल, पवन और अग्नि)
तुम्हारे स्पर्श से हैं
वसंत की सारी शोभाएं
और तुम्हारे चेहरे से ही हैं
सारे इन्द्रधनुषी रंग
बालों की लटों में चमकते हैं
हज़ारों कहकशां.
तुहारी मन-पोखरी में तैरती हैं
रहस्य की रंगीन मछलियाँ
और मुख पर उड़ती हैं
योवन की चंचल तितलियाँ.