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रहीम के दोहे / भाग 3

रहिमन मोम तुरंग चढ़ि, चलिबो पावक मांहि।

प्रेम पंथ ऐसो कठिन, सब कोउ निबहत नांहि।।


रहिमन याचकता गहे, बड़े छोट है जात।

नारायण हू को भयो, बावन आंगुर गात।।


रहिमन वित्त अधर्म को, जरत न लागै बार।

चोरी करि होरी रची, भई तनिक में छार।।


समय लाभ सम लाभ नहिं, समय चूक सम चूक।

चतुरन चित रहिमन लगी, समय चूक की हूक।।


चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।

जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह।।