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रहीसी ठाठु / पढ़ीस

दुफरदा नीम सारी ओढ़ि क्वइरा<ref>अलाव</ref> पर जहाँ बइठय्न
त धन्ना सोंठी साहु के बच्चा ति हम अंइॅठय्न।
महतिया मान मतई मीत, आवयि लागि खगनन्दन<ref>भुषुण्डि, बडे़ विद्वान</ref>;
बदिनि सरपंचु हमका मॉबिलइ मा माँबिलइ मा माँबिला छाँट्यन।
चली कुछु बात सगपहिता कि, हींगइ - हींग सब बोले!
बनइ भाँटा क भरता हम त तेलुइ-तेलु चिल्लान्यन।
भरे भादउँ मा भादा ख्यात मा जामा भगोले के
जो बरूधुइ होति, तउ काहे किसानी जाति हम बोल्यन।
कहिनि कढ़िले तनुकु काकनि कच्यहरी के कहउ किरला,
दिह्यन इसपीचु तड़पड़ ते तमाखू चून फटकार्यन।
नरदहा केरि नालिस<ref>नालिश दावा</ref> मा, कि दादनि की द्यवानी मा
गिरिस्ती खुक्खु कयि दीन्ह्यन नाऊॅ अल्लामु तब पायन।
बिटउनी के बियाहे मा रहयिं ड्यारा पतुरियन के
भवा म्वजरा<ref>वेश्या नाच, हिसाब बराबर करना</ref> छ्वटक्की का, त हम म्याघा तना बरस्यन।
परागी पूत की पटिया कि मइकू म्याड़ छाँटिनि तब
बजी लाठी फँसायन तीनि का, तब हम घरयि आयन।
रहयि आधी क टिप्पा अउ ज्वँधइयउ जब चली अथवयि,
मजे मा भाँग परि गयि याक असि ल्यलकार सुनि पायन
तिलंगा चारि, थानेदार, चउकीदार घर आये
लालि पगड़ी क सुनतयि सब जने भूड़न तरे भाज्यन।

शब्दार्थ
<references/>