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राखी / अज्ञेय

मेरे प्राण स्वयं राखी-से प्रतिक्षण तुझको रहते घेरे
पर उनके ही संरक्षक हैं अथक स्नेह के बन्धन तेरे।
भूल गये हम कौन कौन है, कौन किसे भेजे अब राखी-
अपनी अचिर अभिन्न एकता की बस यही भूल हो साखी!

लाहौर, 29 मार्च, 1935