मेरे प्राण स्वयं राखी-से प्रतिक्षण तुझको रहते घेरे पर उनके ही संरक्षक हैं अथक स्नेह के बन्धन तेरे। भूल गये हम कौन कौन है, कौन किसे भेजे अब राखी- अपनी अचिर अभिन्न एकता की बस यही भूल हो साखी! लाहौर, 29 मार्च, 1935