जीजा-साले के झगड़े में राखी पकड़ बहन रोयेगी।
उसका कोई दोष नहीं है,
फिर भी दंड उसी ने पाया।
इस सावन भी छोटा भाई,
नहीं लिवाने उसको आया।
पति ने भी आदेश दिया है,
बिना बुलाये तुम मत जाना।
दो पुरुषों के अहंकार को आज पुनः नारी ढोयेगी।
भाई सूनी लिए कलाई,
झुकने को तैयार नहीं है।
पत्नी पल-पल घुटे बताओ,
क्या यह पति की हार नहीं है?
कुछ मासूम बुआ को रोएँ,
कुछ मामा के घर जाने को।
कुछ इच्छाएँ आस लगाए सारा दिन थक कर सोएगी।
एक बँधा कच्चे धागे से,
और दूसरा जीवन साथी।
ऐसे में वह बेबस औरत,
बोलो किसका साथ निभाती?
दोनों तरस नहीं हैं खाते,
उस दुखियारी की हालत पर।
यदि भाई से नेह निभाये तो पति की निष्ठा खोएगी।