रोटी-कपडे
या मकान की हो
मनुष्य
या शैतान की हो
राख
राख ही होती है !
राख से
किसी की
क्या पहचान
पहचान तो
उसकी ही होती है
जिस की साख होती है !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"
रोटी-कपडे
या मकान की हो
मनुष्य
या शैतान की हो
राख
राख ही होती है !
राख से
किसी की
क्या पहचान
पहचान तो
उसकी ही होती है
जिस की साख होती है !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"