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राख-२ / ओम पुरोहित ‘कागद’

रोटी-कपडे
या मकान की हो
मनुष्य
या शैतान की हो
राख
राख ही होती है !

राख से
किसी की
क्या पहचान
पहचान तो
उसकी ही होती है
जिस की साख होती है !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"