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राख / नीलेश रघुवंशी

क्या कभी सोचा होगा राख ने
कि वह मँजने के काम आएगी
हाथों ने भी सोचा होगा क्या कभी
उन्हें मेहँदी और राख मिलेंगे एक संग
कितना चिढ़ती होगी मेहँदी राख से
अब राख भी क्या करे
उसका जन्म ही कोरेपन को मिटाने के लिए हुआ है

गुरुवार, 8 दिसंबर 2005, भोपाल