Last modified on 21 जुलाई 2011, at 13:49

राग के आवृत में / नंदकिशोर आचार्य


काली रात के तारों पर
बजती हुई
घनीभूत धुन है तुम्हारी
देह:
मीड़ो-मुरकियों की झूल
में उन्मन
खिंचा जाता हूँ
समाने राग के आवृत में।


मृत्यु से भी अधिक
कैसा दुर्निवार खिंचाव
आह माँ, माँ आह
(1980)