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राजपथ की नहीं भाई / कुमार रवींद्र

राजपथ की नहीं, भाई
हमें तो पगडंडियों की ही ज़रूरत है

राजपथ बनते नहीं हैं
पाँव से
काटते वे हमें
अपने ठाँव से
जोड़ती है हमें पगडंडी
जड़ों से-सगेपन से
गाँव से

जहाँ अपने हों सभी
हमें तो उन बस्तियों की ही ज़रूरत है

राजपथ पर
भीड़ है भारी हुई
और मीठी नदी भी
खारी हुई
टेरती है हमें पगडंडी
वनों से
जहाँ ऋतु है अनछुई

गूँजतीं जो नेह-वन में
हमें तो उन वंशियों की ही ज़रूरत है

राजपथ पर हैं
गुनाहों के किले
वहीं पर हैं
डरे बच्चे भी मिले
दूर पगडंडी दिखाती
हमें सपनों के
अनूठे सिलसिले

बज रहीं जो कहीं गहरे
हमें तो उन घंटियों की ही ज़रूरत है