Last modified on 28 फ़रवरी 2012, at 21:29

राजा अंधा है/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान

इस बस्ती का आलम यारों
बड़ा निराला है,
साँपों के भी पड़ी गले में
स्वागत माला है ।

तेल चमेली का लगता है
यहाँ छछूंदर के,
काली बिल्ली नोच रही है
पंख कबूतर के,
दीपक पी जाता ख़ुद ही
अपना उजियाला है ।

जैसा मियाँ काठ का वैसी
सन की दाढ़ी है,
चोर सिपाही की आपस में
यारी गाढ़ी है,
मंदिर का हर एक पुजारी
पीता हाला है ।

अपना उल्लू सीधा करना
सबका धंधा है,
किससे हाल कहें नगरी का
राजा अंधा है,
पढ़े लिखों के मुँह सुविधा का
लटका ताला है ।

इस बस्ती का आलम यारों
बड़ा निराला है ।