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राजा नीं देखै / नीरज दइया

भायला, कैड़ी नाजोगी बात है-
मुगती री चावना मांय
बैठ्‌या चींतां आपां सगळा
कै बीजां री कतर दां पांख्यां
अर धणियाप ला- ओ आभो!

लुगाई नै सांकळा पैरा परा
का गवाळियै दांई
बांध परी खंभै सूं
रात-रात मांय
नीं बणा सकां सावतरी।

कै पंचतंत्र री खातण दांई
जाणै हणै ई सावतरी-
अड़ी बगत मांय आडा आवै गुर
खसमां नै पोमावण रा
कै इण देस मांय
राजा नीं देखै-
नकटाई!