यक्ष प्रश्नों का जहाँ पहरा कड़ा हो
जिस सरोवर के किनारे
भय खड़ा हो
उस जलाशय का न पानी पीजिए
राजा युधिष्ठिर।
बंद पानी में
बड़ा आक्रोश होता,
पी अगर ले, आदमी बेहोश होता,
प्यार आख़िर प्यास है, सह लीजिए,
राजा युधिष्ठिर।
जो विकारी वासनाएँ कस न पाए,
मुश्किलों में
जो कभी भी हँस न पाए,
कामनाओं को तिलांजलि दीजिए
राजा युधिष्ठिर।
प्यास जब सातों समंदर
लांघ जाए,
यक्ष किन्नर देव नर सबको हराए,
का- पुरुष बन कर जिए
तो क्या जिए?
राजा युधिष्ठिर।
पी गई यह प्यास शोणित की नदी को,
गालियाँ क्या दें व्यवस्था बेतुकी को,
इस तरह की प्यास का कुछ कीजिए
राजा युधिष्ठिर।