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राजू अगर पैसे लौटाएगा / ऋचा जैन

राजू अगर पैसे लौटाएगा
ना
पैसे तुम सब बच्चे आपस में बाँट लेना
एक हिस्सा उसे भी देना
और कहना
मैंने बहुत राह तकी
वो ग़ुब्बारा जो हमने साथ मिल छत से छोड़ा था
वो उस दूर वाली पहाड़ी के ऊपर डोलता है
वहाँ से एक मैना आती है
रोज़ मेरी छत पर गाती है
हवा किसकी, डोरी किसकी
हवा किसकी, डोरी किसकी
चढ़ जाते कुलाँचे भरके-जैसे चढ़ जाया करते थे
और दे आते जवाब
बड़बोली मैना का दोनों मिलकर
साइकिल के पंचर के जो कीले जमा किए थे
वो तालाब की तलहटी में धँसे हुए हैं
कच्छे में एक आख़िरी बार डुबकी लगाते
मछलियाँ बहुत पहचानती हैं
किसका पंचर किसका था
जान आते

बबूल की झाड़ी में फँसी थी पतंग कई बार
पंजी-दस्सी वाली
धीरे–धीरे, संभल-संभल कर निकाल लेते थे हम
वॉचमेन तो अब जाता रहा
उसकी गली में जाके
खुल के एक सिगरेट सुलगाते और
धुएँ संग उगल देते वह सारी बातें...

उसके कानों की रूह को सुकून मिलता
थिएटर की पिछली सीट के नीचे की कोक की बोतलें
चुपके से ख़रीदी मैग्ज़ीनें, चुराए गुटके, गुटकी हुई पीकें
क्या कम कचरा मचाया था हमने संग-संग
फेंक आते कूड़ेदान में
पर अब जो मच गया है
बीच...
बस, बस ही गया है
बीच

वो आए तो उसने कहना
उसकी आहटों की, ठिठौली की,
शरारतों की, शिकायतों की
मैंने बहुत राह तकी
राजू आए तो उससे कहना
मैंने बहुत राह तकी