चिट्ठियों से धारण किए--
धैर्य के समेत
वक़्त ने फिर छिलके
उतार दिए
इतना प्यार
और इतनी घृणा
एक साथ जीने के लिए
कहाँ तक और
कितना धैर्य चाहिए--
मुनीर मियाँ !
चिट्ठियों से धारण किए--
धैर्य के समेत
वक़्त ने फिर छिलके
उतार दिए
इतना प्यार
और इतनी घृणा
एक साथ जीने के लिए
कहाँ तक और
कितना धैर्य चाहिए--
मुनीर मियाँ !