(यह ग़ज़ल राजेश सेमवाल के नाम)
ऐ साक़िया मस्ताना मेरी कौन सुनेगा।
ख़ाली मेरा पैमाना मेरी कौन सुनेगा॥
कोई न सुने मेरी फ़क़त इतना बता दे
किसका है ये मयख़ाना मेरी कौन सुनेगा।
दीवाना बताता है मुझे शाम से पहले
ये दौर है दीवाना मेरी कौन सुनेगा।
अब तो वो ज़माना है कि रूदाद पे मेरी
हँस पड़ता है वीराना मेरी कौन सुनेगा।
सुनता था मेरा हाल भी देता था दिलासा
वो दिल हुआ बेगाना मेरी कौन सुनेगा।
मयख़ाने में भूले से चला आया था लेकर
धज अपनी फ़क़ीराना मेरी कौन सुनेगा।
मैंने तो सदा प्यार ही बाँटा है हबीबों
क्यूँ सोज़ पे जुर्माना मेरी कौन सुनेगा॥
2002-2017