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राज आ नीति / गुंजनश्री

आहाँ भने दाबि दियौन
मार्क्सक गर्दनि
लगा दियौन जाबि
लेनिनक मुँह मे
आ कहि दियौक एकरा
जे हम सर्वहाराक पक्ष मे ठाढ़
अप्पन अभिव्यक्तिक स्वतंत्रता के
हथियार बना प्रयोग क' रहल छी

जखन की
अप्पन सबटा संचित कएल
उदबेग, आबेस आ दरेगक सम्पैत
भजा' क' बैसल ओ
हेरैत अछि पेरा
राजनितिक दोकानक शटर के
फुजय के अशबट्टी मे
ई तथाकथित सर्वहारा सब

मुदा ई कहिं फुजलइयै...आई धरि..?

भाई!
आहाँ कियैक छी ऐना संचमंच  ?
कोन गप्प लेल धुनि रहल छी माथ ?
अहूँ धरि बुरबके रहि गेलहुँ...

अरे ई देश छैक...देश
आ देश के चलाबय लेल
आवश्यक छैक राजनीती,

ओना वेश्या सेहो धरि
खूब जनैये
राजनीती....!