आहाँ भने दाबि दियौन
मार्क्सक गर्दनि
लगा दियौन जाबि
लेनिनक मुँह मे
आ कहि दियौक एकरा
जे हम सर्वहाराक पक्ष मे ठाढ़
अप्पन अभिव्यक्तिक स्वतंत्रता के
हथियार बना प्रयोग क' रहल छी
जखन की
अप्पन सबटा संचित कएल
उदबेग, आबेस आ दरेगक सम्पैत
भजा' क' बैसल ओ
हेरैत अछि पेरा
राजनितिक दोकानक शटर के
फुजय के अशबट्टी मे
ई तथाकथित सर्वहारा सब
मुदा ई कहिं फुजलइयै...आई धरि..?
भाई!
आहाँ कियैक छी ऐना संचमंच ?
कोन गप्प लेल धुनि रहल छी माथ ?
अहूँ धरि बुरबके रहि गेलहुँ...
अरे ई देश छैक...देश
आ देश के चलाबय लेल
आवश्यक छैक राजनीती,
ओना वेश्या सेहो धरि
खूब जनैये
राजनीती....!