पाँचो आंगुर काज करैए
राज करैए छांगुर
आर कते दिन चलत एना
पूछैए पाँचो आंगुर ।
कर्मक फल कहि-कहि कऽ
दुपहरिया मे डिबिया बारत
आनक कैल-धैल पर
कहिया धरि ई ओठगन पारत
बैसल लोक घोरत कहिया धरि
एना दूध मे माहुर !
देव-पितर दऽ हमरा माथे
ल गेल बखरी अपने
लक्ष्मी औती कोन
अपाटी हाथे माला जपने
बौआ केर पौरुख तिलके धरि
भ जयता पुनि डांगर ।
कहिया धरि हमरे कनहा पर
रहत पुरान क मोटा
एक-एक क बिका रहल अछि
घर सँ थारी-लोटा
भागवत क उपदेश बौक सभ
बाँटय भरि-भरि आँजुर ।
(03 नवम्बर 2007)