Last modified on 26 जनवरी 2011, at 22:36

रात्रि / बरीस पास्तेरनाक

रात सरकती है और घटती हुई
प्रस्तुत होती है दिवस के पुनर्जन्म के लिए ।
खोई हुई धरती के ऊपर
चढ़ता जा रहा है आकाश का एक पॉयलट ।

प्रायः अदृश्य हो रहा है वह बादल में
एक छोटी चिंगारी की तरह लगता है वह ।
लो ! अब तो यह क्रॉस-चिह्न के बखिए जैसा दिखता है
एक पतिंगे की मानिंद, लॉन्ड्री के एक दाग जैसा ।

नीचे उसके अनजाने नगर हैं
भीड़भाड़ वाली गलियाँ हैं
नाइट-क्लब, बैरक, फ़ायरमैन
और हैं रेलवेलाइनें और गाड़ियाँ ।

उसके पसरे पंखों की छाया
घनी पड़ती है बादलों पर
उसके चारों ओर चक्कर काटते हैं
झुंड के झुंड ग्रह-नक्षत्र ।

और वहीं शून्य से भयभीत
अनजाने सौरमंडलों से दूर
चतुर्दिक घूमती है
आकाश-गंगा।

अंतहीन दिक-दिगंत में
जल रहे हैं देश-महादेश ।
नीचे गर्भगृहों में, भट्ठियों में,
रात भर काम कर रहे हैं फ़ायरमैन ।

और पेरिस में एक छत के नीचे,
हो सकता है 'मंगल' और 'शुक्र' हों,
देखते हैं एक इश्तिहार
हॉल मे होने वाले एक प्रहसन का ।

और संभवत: सबसे ऊपर वाली मंज़िल के कमरे में
प्राचीन पाषाण-पटलों के नीचे
एक आदमी जग कर बैठा है काम करते हुए ।
वह सोचता है, भाव-भारान्वित हो जाता है और प्रतीक्षा करता है।

वह ग्रह-नक्षत्रों की ओर ऊपर तकता है
मानो रात में खानगी तौर पर
सुपुर्द की गई जवाबदेही के अंदर,
नैसर्गिक अंतरिक्षों की निगरानी भी शामिल थी ।

अपनी नींद को भगाओ, जागरूक रहो
काम करते जाओ, अपनी गति कायम रखो,
पॉयलट की तरह
नभ-मंडल के सबसितारों की तरह चौकसी करते ।

काम करो, काम करो, ओ सृजनहार !
सो जाना एक अपराध है ।
तुम अनंत सृष्टि के हाथों गिरवी हो
और हो समय के बंदी ।


अँग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : अनुरंजन प्रसाद सिंह