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रात और रेल / मजाज़ लखनवी

फिर चली है रेल स्टेशन से लहराती हुई|
नीम-शब की ख़ामोशी में ज़ेर-ए-लब गाती हुई|

[नीम-शब=मध्य-रात्री; ज़ेर-ए-लब=शोर]

डग-मगाती, झूमती, सीटी बजाती, खेलती,
वादी-ओ-कोहसर की ठंडी हवा खाती हुई|

[वादी-ओ-कोहसर=वादी और पहाड]

तेज़ झोंकों में वो छम छम का सरोद-ए-दिल-नशीं,
आन्धियों में मेह बरसने की सदा आती हुई|

[मेह=बरखा]

जैसे मौजों का तरन्नुम जैसे जल-परियों के गीत,
इक-इक लय में हज़ारों ज़म-ज़में गाती हुई|

नौनिहालों को सुनाती मिठी मिठी लोरियाँ,
नाज़-नीनों को सुनहरे ख़्वाब दिखलाती हुई|

ठोकरें खाकर, लचकती, गुनगुनाती, झुमती,
सर-ख़ुशी में घुंघरूओं की ताल पर गाती हुई|

नाज़ से हर मोड़ पर खाती हुई सौ पेच-ओ-ख़म,
इक दुल्हन अपनी अदा से आप शर्माती हुई|

[पेच-ओ-ख़म= बलखाते हुए]

रात की तारीकियों में झिल-मिलाती, काँपती,
पटरियों पे दूर तक सीमाब छलकाती हुई

[तारीकी=अन्धेरा; सीमाब=पारा]

जैसे आधी रात को निकली हो इक शाही बरात,
शादियानों की सदा से वज़्द में आती हुई|

[शादियानों=शहनाई; वज़्द= बेइंतहा ख़ुशी]

मुन्तज़िर कर के फ़ज़ा में जा-ब-जा चिंगारियाँ,
दामन-ए-मौज-ए-हवा में फूल बरसाती हुई|

तेज़-तर होती हुई मंज़िल-ब-मंज़िल दम-ब-दम,
रफ़्ता रफ़्ता अपना असली रूप दिखलती हुई|

सीना-ए-कोहसर पर चड़्हती हुई बे-इख़्तियार,
एक नागन जिस तरह मस्ती में लहराती हुई|

[कोहसर=पहाड; बे-इख़्तियार=बेकाबू]
[नागन(नागिन)= नाग/र्प]

इक सितारा टूट कर जैसे रवाँ हो अर्श पर,
रिफ़त-ए-कोहसर से मैंदान में आती हुई|

[रिफ़त-ए-कोहसर=पहाड की चोटी]

इक बगूले की तरह बढती हुई मैंदान में,
जंगलों में आन्धियों का ज़ोर दिखलाती हुई|

याद आ जाये पुराने देवताओं का जलाल,
इन क़यामत-ख़ेज़ियों के साथ बलखाती हुई|

[जलाल=तेज़/चमक]

एक रख़्श-ए-बे-इनाँ की बर्क़-रफ़्तारी के साथ,
ख़ंदक़ों को फाँदती टीलों से कतराती हुई|

[रख़्श-ए-बे-इनाँ= बिन लगाम का घोडा]
[ख़ंदक़ों=झरने]

मुर्ग़-ज़ारों में दिखाती जू-ए-शिरीं का ख़िराम,
वादियों में अब्र के मानिंद मन्डराती हुई|

[मुर्ग़-ज़ारों=हरे जंगल; जू-ए-शीरीं= मीठे पानी की नदी]
[ख़िराम=धीरे-धीरे; अब्र=बादल; मानिंद=जैसे]

इक पहाड़ी पर दिखाती आबशारों की झलक,
इक बियाबाँ में चिराग़-ए-तूर दिखलाती हुई|

जुस्तजू में मंज़िल-ए-मक़सूद की दीवानावार,
अपना सर धुनती फ़ज़ा में बाल बिखराती हुई|

छेड़ती इक वज़्द के आलम में साज़-ए-सरमदी,
ग़ैज़ के आलम में मूँह से आग बरसाती हुई|

[ग़ैज़=गुस्सा]

रेंगती, मुड़ती, मचलती, तिल-मिलाती, हाँपती,
अपने दिल की आतिश-ए-पिन्हाँ को भड़काती हुई|

[आतिश-ए-पिन्हाँ=छुपी हुई आग]

ख़ुद-ब-ख़ुद रूठी हुई, बिफ़री हुई, बिखरी हुई,
शोर-ए-पैहम से दिल-ए-गेती को धड़काती हुई|

शोर-ए-पैहम= लगातार शोर; दिल-ए-गेती= दुनिया का दिल ]

पुल पे दरिया के दमादम कौँदती ललकारती,
अपनी इस तूफ़ान-अंगेज़ी पे इतराती हुई|

पेश करती बीच नदी में चिराग़ का समाँ,
साहिलों पे रेत के ज़र्रों को चमकाती हुई|

मूँह में घुसती है सुरंगों के यकायक दौड़ कर,
दन-दनाती, चीख़ती, चिंघाड़ती गाती हुई|

आगे आगे जुस्तजू-आमेज़ नज़रें डालती,
शब के हैबतनाक नज़्ज़ारों से घबराती हुई|

[जुस्तजू-आमेज़=इन्क़ुइसितिवे; हैबतनाक=तेर्रिफ़्यिन्ग]

एक मुजरिम की तरह सहमी हुई सिमटी हुई,
एक मुफ़लिस की तरह सर्दी में थर्राती हुई|

[मुफ़लिस=गरीब]

तेज़ी-ए-रफ़्तार के सिक्के जमाती जा-ब-जा,
दश्त-ओ-दर में ज़िन्दगी की लहर दौड़ाती हुई|

[दश्त-ओ-दर=भीड़-भाड़ वाली जगह]

सफ़ाह-ए-दिल से मिटाती अहद-ए-माज़ी के नुक़ूश,
हाल-ओ-मुस्तक़बिल के दिल-कश ख़्वाब दिखलाती हुई|

[सफ़ाह-ए-दिल=दिल का कागज़; अहद-ए-माज़ी=बीता हुआ]
[नुक़ूश=धब्बे; हाल-ओ-मुस्तक़बिल=वर्तमान और भविष्य]

डालती बेहिस चट्टानों पर हिक़ारत की नज़र,
कोह पर हँसती फ़लक को आँख दिखलती हुई|

[फ़लक=आकाश]

दामन-ए-तारीकी-ए-शब की उड़ाती धज्जियाँ,
क़स्र-ए-ज़ुल्मत पर मुसल-सल तीर बरसाती हुई|

[क़स्र-ए-ज़ुल्मत= अन्धेरा का महल]

ज़द में कोई चीज़ आ जाये तो उस को पीस कर,
इर्तिक़ा-ए-ज़िन्दगी के राज़ बतलाती हुई|

[इर्तिक़ा-ए-ज़िन्दगी= जिन्दगी की तरक्की]

ज़ोम में पेशानी-ए-सेहरा पे ठोकर मारती,
फिर सुबक-रफ़्तारियों के नाज़ दिखलाती हुई|

[ज़ोम=प्रतिष्ठा; सुबक-रफ़्तारियों=धीरे-धीरे]

एक सर्कर्श फ़ौज की सूरत अलम खोले हुए,
एक तूफ़ानी गरज के साथ दर्राती हुई|

[अलम=झंडा]

हर क़दम पर तोप की सी घन-गरज के साथ साथ,
गोलियों की सन-सानाहट की सदा आती हुई|

वो हवा में सैकड़ों जंगी दुहल बजते हुए,
वो बिगुल की जाँ-फ़ज़ा आवाज़ लहराती हुई|

[जंगी दुहल=लड़ाई का बिगुल]

अल-ग़रज़ उड़ती चली जाती है बेख़ौफ़-ओ-ख़तर,
शायर-ए-आतिश-नफ़स का ख़ून खौलाती हुई|