रात का अन्धेरा
सन्नाटा उगलता हुआ
हिला देता है मुझको
घड़ी की खटकती सुई
घरघराती साँस किसी की
सुनती हूँ चुपचाप
कब और न जाने कैसे
नींद आ गई
रजाई में घुसकर
सपने देखती
उबलते- ऊँघते और ख़ुश होते
सुबह हुई
अन्धेरे के बाद
रात का अन्धेरा
सन्नाटा उगलता हुआ
हिला देता है मुझको
घड़ी की खटकती सुई
घरघराती साँस किसी की
सुनती हूँ चुपचाप
कब और न जाने कैसे
नींद आ गई
रजाई में घुसकर
सपने देखती
उबलते- ऊँघते और ख़ुश होते
सुबह हुई
अन्धेरे के बाद