रात के उनींदे अरसाते,मदमाते राते
अति कजरारे दृग तेरे यों सुहात हैं.
तीखी तीखी कोरनि करोरि लेत काढ़े जिउ,
केते भए घायल औ केते तफलात हैं.
ज्यों ज्यों लै सलिल चख 'सेख'धोवै बार बार,
त्यों त्यों बल बुंदन के बार झुकि जात हैं.
कैबर के भाले,कैधौं नाहर नहनवाले,
लोहू के पियासे कहूँ पानी तें आघात हैं?