रात दर्जिन थी कोई
सीती थी दिन के पैरहन
के फटे हिस्से...
वो जाने कैसा लम्हा था
धागे उलझ गए सारे
सुईयाँ भी गिरकर खो गईं ।
दिन का लिबास
उधड़ा ही रहेगा अब...
रात दर्जिन थी कोई
सीती थी दिन के पैरहन
के फटे हिस्से...
वो जाने कैसा लम्हा था
धागे उलझ गए सारे
सुईयाँ भी गिरकर खो गईं ।
दिन का लिबास
उधड़ा ही रहेगा अब...