रात भर / सुधा ओम ढींगरा

रात भर
यादों को
सीने में
उतारती रही,
चाँद- तारों
को भी
चुप-चाप
निहारती रही.

शांत
वातावरण
में न
हलचल हो कहीं,
तेरा नाम
धीरे से
फुसफुसा कर
पुकारती रही.

तेरी नजरें
जब भी
मिलीं
मेरी नज़रों से,
उन क्षणों को
समेट
पलकों का सहारा
देती रही.

उदास
वीरान
उजड़े
नीड़ को,
अश्रुओं
कुछ आहों
चंद सिसकियों से
संवारती रही.

जीवन की
राहों में
छूट गए
बिछुड़ गए जो ,
मुड़-मुड़ के
उन्हें देखती
लौट आने को
इंतज़ारती रही.

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