गुजरी को दही अहो मीठो लगे,
घर माखन मांट भरे यशधारी |
परभात बहानू करे गऊ को,
पर कृष्ण कहां रतियाँ रह सारी |
नन्द यसोधा अशिष-अशिष दे,
गुजरी देत तुम्हे नित गारी |
शिवदीन यूँ राधिका रीस भरी,
समझावत श्याम को श्याम की प्यारी |
रैन में चैन से सोवत हो,
मन मोहन आँख लगे न हमारी |
तुम गोपिन के घर जाय घुसो,
हम तो सगरी युहीं रैन गुजरी |
अब बात बनी को बनावत हो,
कहूँ छानी छुपे अँखियाँ कजरारी |
शिवदीन यूँ राधिका रीस भरी,
समझावत श्याम को श्याम की प्यारी |