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राधे लीन्ही छोर / प्रेमलता त्रिपाठी

मुरली माखन चोर की, राधे लीन्ही छोर।
डाह रही सौतन बनी, लिए फिरें निशि भोर॥

बिसरें नाहीं वाहि को, यशुमति तेरे लाल,
हाँथ कँगन को आरसी, देखें नैना मोर।

मोहन को भरमा रही, धेनु चरावें दूर,
भूल गये माखन दही, मेरे नंद किशोर।

बैर बढ़ाती बांसुरी, श्याम हमारे बीच,
प्रीति हमारी मोल ले, छीन रही चितचोर।

प्रेम झपकि न पलक रहे, ठान करें अब राढ़,
रूप मोहिनी संग वह, मुरली करत विभोर।