पहाड़ों के माथे पर
बर्फ़ की सफ़ेदी है
और मेरे बालों में
उतर रहा है
बीतते जाते वक़्त उजलापन ।
अडिग
अचल
खड़ा है नगाधिराज...
मैं ही क्यों होता रहता हूँ
प्रतिकूलताओं से दोलायमान ।
थोड़ी-सी हिम्मत मुझे भी बख़्शो
मेरे हिमालय !
मेरे हिमवान ! !