शाहों के शाह रुको
इन पवित्र घाटों पर राख मत बिखेरो
यहाँ रोज़ आता है
देवकुल नहाने को
साधु-संत आते हैं
यहाँ मोक्ष पाने को
यह तारनहार नदी
इसे नहीं अंधी मीनारों से घेरो
पीढ़ी-दर-पीढ़ी हैं
यहाँ मंत्र-जाप हुए
हृदय-बसे नेह-राग के हैं
आलाप हुए
लाट-हाट धूर्त बड़े
उनकी चतुराई को यहाँ नहीं टेरो
बिरछ-गाछ बचे यहाँ-
उनको तो रहने दो
कबिरा की साखी को
सच्चाई कहने दो
अनहोनी करो नहीं
रामराज की उलटी माला मत फेरो