Last modified on 2 जुलाई 2010, at 12:57

रामलखन / भारतेन्दु मिश्र

युवा कवि रामलखन के असामयिक निधन पर शोकगीत

तिकड़म की दुनिया मे रहकर
बहुत जी गए रामलखन
बड़े-बड़ों के बीच
छुपे-रुस्तम निकले तुम रामलखन।

अपनी शर्तो पर जीने का हस्र
यही सब होना था
घरवालों को बीच राह मे
छोड़ गए तुम रामलखन।

कविता छूटी दुनिया छूटी
सारे सपने छूट गए
सच्चाई का कच्चा साँचा
छोड़ गये तुम रामलखन।

कल जिसको उँगली पकड़ाई
वह मासूम हथेली थी
बस उस पर उँगली का छापा
छोड़ गए तुम रामलखन।