किस पर्वत ने
दिया तुम्हें
अपना संचित अधैर्य!
तुम्हारी थकती हुई देह पर
बरस रही है जागरण की चमक
विचर रहे हो तुम
आबाद होने की महक के बीच
किस पर्वत ने
दिया तुम्हें
अपना संचित अधैर्य!
तुम्हारी थकती हुई देह पर
बरस रही है जागरण की चमक
विचर रहे हो तुम
आबाद होने की महक के बीच