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राम-नाम-महिमा / तुलसीदास/ पृष्ठ 11


राम-नाम-महिमा-10
 
 (109)

जागैं जोगी-जंगम ,जती -जमाती ध्यान धरैं,
डरैं उर भारी लोभ, मोह, कोह, कामके।

 जागै ं राजा राजकाज , सेवक-समाज , साज,
सोचैं सुनि समाचार बड़े बैरी बामके।।

 जागैं बुध बिद्या हित पंडित चकित चित,
जागैं लोभी लालच धरनि,धन, धामके।।

 जागैं भोगी भोग हीं, बियोगी, रोगी रोगबस,
 सोवैं सुख तुलसी भरोसे एक रामके।।

(110)

रामु मातु, पितु, बंधु, सुजन, गुरू, पूज्य, परमहित।
साहेबु,सखा, सहाय, नेह -नाते , पुनीत चित।।

 देसु , कोसु, कुलु, कर्म, धर्म, धनु ,धामु , धरनि, गति।
जाति -पाँति सब भाँति लागि रामहि हमारि पति।।