राम-नाम-महिमा-8
(105)
आगम, बेद, पुरान बखानत मारग कोटिन, जाहि न जाने।
जे मुनि ते पुनि आपुहि आपुको ईसु कहावत सिद्ध सयाने।।
धर्म सबै कलिकाल ग्रसे , जप, जोग ,बिरागु लै जीव पराने।।
को करि सोचु मरै ‘तुलसी’ , हम जानकीनाथके हाथ बिकाने।।
(106)
धूत कहौं, अवधूत कहौं, रजपूतु कहौं , जोलाहा कहौं कोऊ।
काहूकी बेटीसोें बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ।।
तुलसी सरनाम गुलामु है रामको, जाको रूचै सो कहै कछु ओऊ।
माँगि कै खैबो, मसीतको सोइबो,लैबोको एकु न दैबेको दोऊ।।