राम की कृपालुता-3
( छंद संख्या 5,6)
(5)
मीत पुनीत कियो कपि भालुको, पाल्यो ज्यों काहुँ न बाल तनूजो।
सज्जन सींव बिभीषनु भो, अजहूँ बिलसै बर बंधुबधू जो।।
कोसलपाल बिना ‘तुलसी’ सरनागतपाल कृपाल न दूजो।
क्रूर, कुजाति , कपूत,अघी, सबकी सुधरै , जो करै नरू पूजो।5।
(6)
तीय सिरोमनि सीय तजी, जेहिं पावककी कलुषाई दही है।
धर्मधुरंधर बंधु तज्यो, पुरलागनिकी बिधि बोलि कही है।।
कीस निसाचरकी करनी न सुनी , न बिलोकी, न चित्त रही है।
राम सदा सरनागतकी अनखौंही, अनैसी सुभायँ सही है।6।