राम की कृपालुता-5
( छंद संख्या 9, 10)
(9)
नरनारि उधारि सभा महुँ होत दियो पटु , सोचु हर्यो मनको।
प्रहलाद बिषाद-निवारन , बारन-तारन, मीत अकारनको।।
जो कहावत दीनदयाल सही, जेहि भारू सदा अपने पनको।।
‘तुलसी’ तजि आन भरोस मजें , भगवानु भलो करिहैं जनको।9।
(10)
रिषिनारि उधारि, कियो सठ केवटु मीतु पुनीत, सुकीर्ति लही।
निजलाकु दियो सबरी-खगको, कपि थाप्यो , सो मालुम है सबही। ।
दससीस -बिरोध सभीत बिभीषनु भूपु कियो, जग लीक रही।।
करूनानिधि को भजु , रे तुलसी! रघुनाथ अनाथ के नाथु सही।10।