ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे भाई लखन सहित भगवान
साक्षी आज बने हनुमान
गले लगे सुग्रीवराज के
परिचय देकर मित्र बनाया
एक दूसरे को मित्रों ने
अपना अपना दुःख सुनाया
था सुग्रीव दुखी भाई से ,प्रिया खोजते कृपानिधान
दुंदुभि की कंकाल अस्थि को
सागर पार दूर पहुंचाया
एक बाण से सात साल को
भेद वहीं पर काट गिराया
वृक्ष ओट से रामचंद्र ने ,मारा बालि एक ही बान
ज्ञान दिया फिर बलिराज को
रोती तारा को समझाया
किष्किंधा सुग्रीव को दिया
सुत अंगद को गले लगाया
किया सिया की की खोज हेतु अब, वानरसेना ने प्रस्थान