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रिक्तता / निर्मला गर्ग

  
माँ मुझे समझ नहीं पाई
उनके गले में फंगस लगी रूढ़ियों
और जर्जर परम्पराओं की सिकड़ी (ज़ंजीर) रहती थी ।
वह उनके हृदय के नज़दीक थी
मैं नहीं ।

मेरी गतिविधियाँ माँ को बेचैन करती थी
मेरे भविष्य से ज़्यादा उन्हें अपने बाक़ी बच्चों
के भविष्य की चिन्ता रहती थी
कहीं मेरे विचारों के छींटे उनपर न पड़ जाएँ ।

मेरी स्टडी में माँ की एक तस्वीर टँगी है
कभी-कभी वह तस्वीर मुझे दिख जाती है
उस दिखने में एक रिक्तता है ।