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रिमझिम सावन / पीसी लाल यादव

रिमझिम सावन, रितु मनभावन, बरसे अमरित बूंदिया रे।
धरती हरियर लुगरा पहिरे, लइका खेले घरघुंदिया रे।

बादर के संग सुरूज संगी,
खेलय टीप आँख मिचोली।
किसान फांदे बियासी नांगर,
चभरंग-चभरंग करे डोली॥

तरिया टिपटिप कुआँ लिबलिब, पल्ला भागय नंदिया रे।
रिमझिम सावन, रितु मनभावन, बरसे अमरित बूंदिया रे।

धान चालत निंदइया मन ह,
नीक-नीक ददरिया गावय।
हवा म झूमे बंभरी रुखवा
मगन सोनफूल बरसावय॥

पिया-परदेस, न सोर-संदेस, बैरी होगे निंदिया रे।
रिमझिम सावन, रितु मनभावन, बरसे अमरित बूंदिया रे।

खोंदरा झांकत चिरई पिला,
अपन महतारी ल अगोरे।
ठऊँका बेरा मयारू माई घलो
आगे चोंच म चारा जोरे॥

दया-मया ले, माई-पिला के जुड़ा जथे अँखिया रे।
रिमझिम सावन, रितु मनभावन, बरसे अमरित बूंदिया रे।

टर-टर टर-टर दादुर बोले
करम के गीता बाँचे।
गली-खोर म नाचे लइका
घानी-मुनी घोर दे नाचे॥

हरेली-भोजली, भइया बर राखी, जोर अगोरे तिजिया रे।
रिमझिम सावन, रितु मनभावन, बरसे अमरित बूंदिया रे।