रिमझिम सावन, रितु मनभावन, बरसे अमरित बूंदिया रे।
धरती हरियर लुगरा पहिरे, लइका खेले घरघुंदिया रे।
बादर के संग सुरूज संगी,
खेलय टीप आँख मिचोली।
किसान फांदे बियासी नांगर,
चभरंग-चभरंग करे डोली॥
तरिया टिपटिप कुआँ लिबलिब, पल्ला भागय नंदिया रे।
रिमझिम सावन, रितु मनभावन, बरसे अमरित बूंदिया रे।
धान चालत निंदइया मन ह,
नीक-नीक ददरिया गावय।
हवा म झूमे बंभरी रुखवा
मगन सोनफूल बरसावय॥
पिया-परदेस, न सोर-संदेस, बैरी होगे निंदिया रे।
रिमझिम सावन, रितु मनभावन, बरसे अमरित बूंदिया रे।
खोंदरा झांकत चिरई पिला,
अपन महतारी ल अगोरे।
ठऊँका बेरा मयारू माई घलो
आगे चोंच म चारा जोरे॥
दया-मया ले, माई-पिला के जुड़ा जथे अँखिया रे।
रिमझिम सावन, रितु मनभावन, बरसे अमरित बूंदिया रे।
टर-टर टर-टर दादुर बोले
करम के गीता बाँचे।
गली-खोर म नाचे लइका
घानी-मुनी घोर दे नाचे॥
हरेली-भोजली, भइया बर राखी, जोर अगोरे तिजिया रे।
रिमझिम सावन, रितु मनभावन, बरसे अमरित बूंदिया रे।