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रिश्ते-1 / नवनीत पाण्डे

रिश्ते
सिर्फ
हम दो
हमारे दो

सम्बन्ध
सिर्फ उन से
जो काम के हो

समाज
सिर्फ वह
जहाँ अपना कोई न हो

उत्सव
सिर्फ वहाँ
जहाँ
औपचारिक-अनौपचारिक
आयोजनों के
औपचारिक निमंत्रणों से
भीड़ इकठ्ठा हो

क्या पढ़ा-लिखा
क्या अनपढ़
आदमी रहा
आदमी से कट
सारी आत्मीयता, सगापन
रोशनी की जगमगाहटों, शाही टैंटों में
शाही दावत का स्वाद ले
अपने-अपने अंधेरों में
दुबक गया है

सच !
शहर में आदमी
सिर्फ़
शुभकामनाओं सहित
शगुन का लिफ़ाफ़ा
हो कर रह गया है...