जानते हो कुछ रिश्तों की मुश्किल
उलझे है जलेबी जैसे
डूबे है मीठी चाशनी में भी
एक ने कहा पाव भर चाहिए
और दुसरा ढाई सौ ग्राम मांगता है...
स्वाद वही बात वही लेकिन
ज़िन्दगी है ना जलेबी जैसी
मीठी लेकिन उलझी हुई
जानते हो कुछ रिश्तों की मुश्किल
उलझे है जलेबी जैसे
डूबे है मीठी चाशनी में भी
एक ने कहा पाव भर चाहिए
और दुसरा ढाई सौ ग्राम मांगता है...
स्वाद वही बात वही लेकिन
ज़िन्दगी है ना जलेबी जैसी
मीठी लेकिन उलझी हुई