संबंध--
जिन पर
रिश्तों की धूप
अभी उतरी भी न थी
और तुमने उन्हें उपहार दे डालीं
कोहरे में लिपटी सर्द रातें…
तब मेरे भीतर
चटक गई थीं
तमाम लाल-हरी चूड़ियाँ--
शगुनों की देहरी पर
बिखरा सिंदूर
आज भी,
मुझे रिश्तों के व्यर्थ होने की
कहानी सुनाया करता है,
रिश्ते, जो शायद झूठ के सिवा
और कुछ भी नहीं होते--!