कुछ देह से जन्मे
कुछ कोख में पड़े अजन्मे
कुछ मन के कुछ अनमने
कितने रिश्ते अब तक मैंने बुने
कुछ चाहतें जो रिश्ते न बन पायीं
कुछ रिश्तों में चाहत न बस पायी
ज़िन्दगी रिश्तों और चाहतों की डोर में
उलझ कर लड़खड़ायी
उलझी ज़िन्दगी को कुछ यूँ सुलझाया
रिश्तों का ज़िन्दगी से समझौता कराया
रिश्तों से समझौता निभाते
बहुत देखे बहुत सुने
परन्तु समझौतों से रिश्ते,
मैंने बुने मैंने बुने